हिमाचल प्रदेश के छोटे कस्बो में तैयार हो रहा एशिया का नम्बर वन सिल्क
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हिमाचल प्रदेश। एशिया में नंबर वन आंका गया सिल्क हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे संगास्वीं में तैयार हो रहा है। यहां का वातावरण कोकून तैयार करने के लिए सबसे बेहतरीन है। यहां तैयार हो रहे धागे की जीरो वेस्टेज है। संगास्वीं में उत्पादक साल में दो बार फसल ले रहे हैं। गांव के 992 और पूरे जिले के 3500 परिवार अन्य रोजगार के अलावा हर माह करीब 20 हजार रुपये अतिरिक्त कमाई कोकून से ही कर रहे हैं। यहां तैयार होने वाले कोकून के धागे का इस्तेमाल अच्छे उत्पाद बनाने के लिए किया जा रहा है। इसकी डिमांड भी ज्यादा है। बिलासपुर जिले के संगास्वी क्षेत्र में बसंत ऋतु में कोकून का 80 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है, जबकि पतझड़ में 20 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है। किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ कर रहे इस व्यवसाय के साथ लगातार जिले के किसान जुड़ते जा रहे हैं।
बाहरी राज्यों को भेजा जा रहा धागा
जिले के हीरापुर और चकराणा में धागा तैयार करने की यूनिटें लगी हैं। यहां पर बेहतर धागा तैयार कर कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर को भेजा जा रहा है। इन धागों से बेहतरीन साडि़यां तैयार हो रही हैं।
बालीचौकी में लगाया है उद्योग
प्रदेश में बढ़ रहे कोकून उत्पाद के चलते अब प्रदेश के बालीचौकी में उद्योग स्थापित किया गया है। जहां पर जल्द ही कोकून के बेहतर उत्पाद बनाने का शोध होगा। इसके बाद जिन उत्पादों के दाम बेहतर होंगे और मांग ज्यादा होगी, उन उत्पादों को रेशम के धागे से प्रदेश में ही तैयार किया जाएगा।
वेस्टेज भी नहीं -उपनिदेशक
उपनिदेशक बलदेव चौहान ने बताया कि वातावरण के बेहतर होने के कारण संगास्वीं में तैयार हो रहा रेशम का धागा एशिया में सबसे बेहतर माना गया है। यहां तैयार होने वाले धागे की किसी तरह की बरबादी नहीं हो रही है। यहां के किसान अपनी आर्थिकी सुदृढ़ कर रहे हैं।
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